38, अयं स्वभावः
अयं स्वभाव स्वत एव यत्परश्रमापनोदप्रवणं महात्मनाम्। सुधांशुरेष स्वयमर्ककर्कशप्रभाभितप्तामवति क्षितिं किल।। ३८ -- अयं स्वभावः स्वतः एव यत् पर श्रम आपनोद प्रवणं महात्मनाम्। सुधांशुः एषः स्वयं अर्क-कर्कश प्रभाभितप्तां अवति क्षितिं किल।। -- यह तो महात्मा पुरुषों की स्वाभाविक करुणा ही होती है कि वे स्वयं ही आगे रहकर दूसरों के कष्टों का वैसे ही परिहार कर देते हैं जैसे कि चन्द्रमा, सूर्य की प्रखर गर्मी से तप्त धरती पर अपनी शीतल किरणें फैलाकर उसकी रक्षा करता है। -- Just as the moon radiates its cool soothing rays upon the earth and as a result, the earth scorched by the harsh sun is relieved of its burning heat, It is in the very nature of great men that they on their own, try to remove troubles of others. --