115, अभावना वा,
अभावना वा विपरीतभावनाऽसंभावनाविप्रतिपत्तिरस्याः ।
संसर्गयुक्तं न विमुञ्चति ध्रुवं विक्षेपशक्तिः क्षपयत्यजस्रम्।। ११५
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अभावना वा विपरीतभावना-असंभावना विप्रतिपत्तिः अस्याः।
संसर्गयुक्तं न विमुञ्चति ध्रुवं विक्षेपशक्तिः क्षपयति अजस्रम्।।
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किसी भी विशिष्ट भावना से रहित हो, या विपरीत भावना से युक्त हो, या विश्वास या संशय से युक्त या रहित न होने पर भी, जो (विषयों से) बँधा हुआ है, उसे (अविद्या रूपी) विक्षेपशक्ति सदैव और सतत पीड़ा देती रहती है।
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Having a concept, or not having at all any of such a concept, having a contrary belief or a doubt, there is never release from this power of distraction for one who is attached (to sense-objects and the sense-experience).
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