101, अन्धत्वमन्दत्व
अन्धत्वमन्दत्वपटुत्वधर्माः सौगुण्यवैगुण्यवशाद्धि चक्षुषः।
बाधिर्यमूकत्वमुखास्तथैव श्रोत्रादिधर्मा न तु वेत्तुरात्मनः।। १०१
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अन्धत्व-मन्दत्व-पटुत्व-धर्माः सौगुण्य-वैगुण्य-वशात्-हि चक्षुषः ।
बाधिर्य-मूकत्व-मुखाः तथा एव श्रोतृ-आदि-धर्माः न तु वेत्तुः आत्मनः।।
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अन्धता, मन्दता, पटुता आदि नेत्र-धर्म, नेत्रों के गुणों अथवा दोषों के अनुसार हुआ करते हैं। इसी प्रकार ठीक से सुनाई न देना, बोल पाने में असमर्थ होना आदि भी क्रमशः कानों और मुख के गुणों या दोषों के अनुसार हुआ करते हैं। ये सब धर्म, गुण-दोष, इन्द्रियों आदि के होते हैं, न कि (इनके माध्यम से विषयों आदि को) जाननेवाले आत्मा के।
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Blindness, weakness, strength of sight, depend upon the defects, fitness, strength of the eyes. Similarly, the deafness, dumbness respectively, depend upon the defects, fitness, strength of the senses like the ear and the mouth, and are not of the Self, Who knows (the objects through all these senses).
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