372, अन्तस्त्यागो बहिस्त्यागो
अन्तस्त्यागो बहिस्त्यागो विरक्तस्यैव युज्यते।
त्यजत्यन्तर्बहिःसङ्गं विरक्तस्तु मुमुक्षया।। ३७२
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अन्तः त्यागः बहिः त्यागः विरक्तस्य एव युज्यते।
त्यजति अन्तः बहिः सङ्गं विरक्तः तु मुमुक्षया।। --केवल कोई विरक्त पुरुष ही मन तथा इन्द्रियों से विषयों को त्याग सकता है। केवल कोई विरक्त ही मुमुक्षा से युक्त होने पर इस प्रकार से मन तथा इन्द्रियों के विषयों को अनायास त्याग पाता है।
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Only a man who has no attachment to the pleasures and pains of sense-objects can renounce them.
Only such a one with a deep urge for liberation can thus relinquish all sense objects from mind effortlessly.
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