55, अविद्याकामकर्मादि

अविद्याकामकर्मादिपाशबन्धं विमोचितुम् ।।

कः शक्नुयाद्विनात्मानं कल्पकोटिशतैरपि ।।५५।।

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अन्वय :

अविद्या-काम-कर्मादि-पाशबन्धं विमोचितुम् । कः शक्नुयात् विना आत्मानं कल्पकोटि-शतैः अपि ।।

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अर्थ :

अपने अविद्या, काम तथा कर्म इत्यादि के बन्धन से मुक्त होने के लिए, अपने स्वयं को ही यत्न करना होता है। अपने स्वयं से कोई अन्य, कोटि कोटि जन्मों में भी हमें इन बन्धनों से कैसे मुक्त करा सकता है? 

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Ignorance of the Self, desire, good, bad, noble or evil deeds are the bondage. One oneself needs to make effort to free oneself from the bondage. Who other than himself could ever help and free him?

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