अतीव सूक्ष्मं
अतीव सूक्ष्मं परमात्मतत्त्वं
न स्थूलदृष्ट्या प्रतिपत्तुमर्हति।
समाधिनात्यन्त सुसूक्ष्मवृत्त्या
ज्ञातव्यमार्यैरतिशुद्धबुद्धिभिः ।।
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अतीव सूक्ष्मं परम-आत्मतत्त्वं न स्थूल-दृष्ट्या प्रतिपत्तुं अर्हति ।
समाधिना अत्यन्त सुसूक्ष्म-वृत्त्या ज्ञातव्यं आर्यैः अति शुद्ध बुद्धिभिः ।।
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परम आत्मतत्त्व अत्यन्त सूक्ष्म होने से उसे स्थूलदृष्टि अर्थात् इन्द्रियों, तर्क-वितर्क आदि से नहीं जाना जा सकता है।
न ही वह अनुभव का विषय है।
जब (निर्विकल्प) समाधि में विषयानुभव, विषय तथा विषय के अनुभवकर्ता के बीच का भेद विलीन हो जाता है, तो उस अत्यन्त सूक्ष्म ज्ञानवृत्ति से ही श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा उसे जाना जा सकता है। इस ज्ञानवृत्ति में ज्ञाता, ज्ञानी और उस ज्ञात तत्त्व के बीच का अभेद जान लिया जाता है जैसा कि :
"ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति" से स्पष्ट है।
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The truth of the Supreme Self / आत्मन् / Brahman / ब्रह्मन् / is very subtle, and could not be known through senses, debate or sensory experiences as well. Only in the निर्विकल्प समाधि / choicless awareness, when the distinction between the object of experience, the experiencing, and the one who experiences ceases completely, one attains this truth through this subtle knowing.
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