83, अनुक्षणम्

अनुक्षणं यत्परिहृत्य कृत्यमनाद्यविद्याकृतबन्धमोक्षम् ।

देहः परार्थोऽयममुष्यपोषणे यः सज्जते स स्वमनेन हन्ति।। ८३

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अनुक्षणं यत् परिहृत्य कृत्यं अनादि-विद्या-कृत-बन्ध-मोक्षम् ।

देहः परार्थः अयं अमुष्य पोषणे यः सज्जते सः स्वं अनशन हन्ति।।

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अनादि अविद्या से प्राप्त हुए बन्धन से अपनी आत्मा का मोक्ष कैसे हो, इस ओर ध्यान तक न देकर, जो मनुष्य क्षण प्रतिक्षण इस देह का ही पोषण करने में संलग्न रहता है, जिसका औरों के द्वारा ही उपयोग किया जाता है, वह इस प्रकार अपने आप की हत्या ही कर लेता है। 

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Leaving aside what is needed be done to free oneself from the beginingless ignorance, one who keeps caring moment to moment for and nourishing this body, which is of no use to him but is useful only for others, in a way thereby commits suicide only.

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