8, अतो विमुक्त्यै
अतो विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान् संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृहः सन्।
सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं तेनोपदिष्टार्थ समाहितात्मा।। ८
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अतः विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान् संन्यस्त बाह्य अर्थ-सुख-स्पृहः सन्। सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं तेन उपदिष्ट-अर्थ समाहित- आत्मा ।।
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अतः विमुक्ति के लिए प्रयत्नरत विद्वान् को चाहिए कि सांसारिक वैभव आदि सुख की आशा त्यागकर ऐसे सन्त महात्मा की शरण जाए, जो इस क्षेत्र (विषय) का ज्ञाता हो, उससे उपदेश ग्रहण कर, उस अर्थ को जानकर, भली भाँति उस तत्व में समाहित-चित्त हो जाए।
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Therefore the seeker who is trying to attain liberation, should renounce all worldly desires, should approach a competent teacher, who is kind, and knows well this truth, duly get from him his instructions and find peace and firmness of mind in this way.
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