469, अनिरूप्य स्वरूपं

अनिरूप्य स्वरूपं यन्मनोवाचामगोचरम् ।

एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन।। ४६९

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अनिरूप्यं स्वरूपं यत् मनो-वाचां अगोचरम् ।

एकं एव अद्वयं ब्रह्म न इह नाना अस्ति किञ्चन।। 

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इन्द्रियों, मन तथा वाणी आदि से जिस एकमेव ब्रह्म के स्वरूप को बुद्धि में ग्रहण नहीं किया जा सकता, वह अद्वयमात्र है, यह  नानात्वरूपी भेद से रहित तथा अनिर्वचनीय है।

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The Reality (Brahman) is Indescribable, One,  Undifferentiated, Whole Truth, - devoid of distinctions,  incomprehensible for the senses, mind and intellect.

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