444, अत्यन्त कामुकस्यापि

अत्यन्त कामुकस्यापि वृत्तिः कुण्ठति मातरि ।

तथैव ब्रह्मणि ज्ञाता पूर्णानन्दे मनीषिणः।। ४४४

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अत्यन्त कामुकस्य अपि वृत्तिः कुण्ठति मातरि। 

तथा एव ब्रह्मणि ज्ञाते पूर्णानन्दे मनीषिणः।। 

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जैसे अत्यन्त कामुक मनुष्य की भी कामप्रृवृत्ति माता की उपस्थिति में अनायास विलुप्त हो जाती है, उसी तरह जिस मनीषी ने ब्रह्म को जान लिया है, उसकी भी संपूर्ण कामनाएँ अनायास विलीन हो जाती हैं ।

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Just as the lust in a voluptuous man vanishes in the presence of his mother, likewise all the worldly longings in the wise, who has realized the Brahman, vanish at once.

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