410, अजरममरमस्ताभाववस्तुस्वरूपम्
अजरममरमस्ताभाववस्तुस्वरूपम्
स्तिमितसलिलराशिप्रख्यमाख्याविहीनम्।
शमितगुणविकारं शाश्वतं शान्तमेकम्
हृदि कलयति विद्वान् ब्रह्म पूर्णं समाधौ।। ४१०
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अजरं अमरं अस्त-अभाव वस्तु-स्वरूपम्
स्तिमित सलिल राशि प्रख्यं आख्याविहीनम् ।
शमितगुणविकारं शाश्वतं शान्तं एकम्
हृदि कलयति विद्वान् ब्रह्म पूर्णं समाधौ।।
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जरामृत्युरहित नित्य अस्तरहित*, सदा अभावरहित*, वस्तुरूपमात्र, तरंगरहित, स्तब्ध जलराशि के समान जिसका वर्णन अवर्णनीय कहकर किया जाता है, जिसके गुणविकार नितान्त शान्त हैं, उस शाश्वत् शान्त एक सद्वस्तु को पूर्ण समाधि में हृदय में स्थित जानकर आत्मवित् ....
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* नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।१६
(गीता - अध्याय २)
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Realizing the undecaying, deathless, Supreme Reality (Brahman) like the undisturbed waters without a ripple, in one's own heart, the wise in transcendent state of mind, attains Brahman, Who is bliss only, eternally devoid of merits and demerits...
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