379, अनात्मचिन्तनं त्यक्त्वा
अनात्मचिन्तनं त्यक्त्वा कश्मलं दुःखकारणम्।
चिन्तयात्मानमानन्दरूपं यन्मुक्तिकारणम् ।।३७९
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अनात्म-चिन्तनं त्यक्त्वा कश्मलं दुःख-कारणम्।
चिन्तय आत्मानं आनन्द-रूपं यत्-मुक्ति-कारणम्।।
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अहितप्रद ग्लानि उत्पन्न करनेवाले अनात्म पदार्थों का चिन्तन करना छोड़कर अपनी आनन्दमय-स्वरूप आत्मा का चिन्तन करो जो मुक्ति का साधन है।
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Giving up thinking about all the Non-self objects that cause misery only, think about the Self that is the freedom ultimate and source of eternal bliss and peace.
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