180, अतः प्राहुर्मनोऽविद्यां

अतः प्राहुर्मनोऽविद्यां पण्डितास्तत्वदर्शिनः। 

येनैव भ्राम्यते विश्वं वायुनेवाभ्रमण्डलम्।। १८०

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अतः प्राहुः मनः अविद्यां पण्डिताः तत्वदर्शिनः। 

येनैव भ्राम्यते विश्वं वायुना इव अभ्रमण्डलम्।। 

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अतः तत्वदर्शी ज्ञानियों ने मन को अविद्या कहा है, क्योंकि मन के द्वारा संसार वैसे ही भ्रमित होता रहता है जैसे कि वायु से मेघ सतत भ्रमण करते रहते हैं। 

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Therefore the wise who know the truth of mind call it "ignorance", because just as wind keeps moving the clouds all the time, ignorance also keeps the world moving always.

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