124, अथ ते सम्प्रवक्ष्यामि

अथ ते सम्प्रवक्ष्यामि स्वरूपं परमात्मनः। 

यद्विज्ञाय नरो बन्धान्मुक्तः कैवल्यमश्नुते।। १२४

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अथ ते सम्प्रवक्ष्यामि स्वरूपं परं-आत्मनः ।

यत् विज्ञाय नरः बन्धान् मुक्तः कैवल्यं अश्नुते ।।

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अब (मैं) तुमसे परात्म-परमात्मा के उस स्वरूप को कहूँगा जिसे जानकर मनुष्य बन्धनों से छूटकर कैवल्य को प्राप्त होता है। 

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Now I  shall enunciate before you the true nature of the Self-Supreme, realizing which one is freed from all bondage and attains the 

"kaivalyam", 

-the ultimate freedom.

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